आज की यात्रा वृतांत में मैं हाल ही में , मार्च में की इंदौर की यात्रा का वर्णन कर रह।
जिसमें एक कार्यक्रम के लिए मुझे और मेरी दो सखियों को इंदौर आमंत्रित किया गया था। इंदौर शहर पिछले 5 वर्षों से भारत के स्वच्छ शहर के रूप में लगातार अवार्ड ले रहा है ।
इसकी ऐतिहासिक जानकारी थोड़ी जो हमने पढी
वह यह कि उज्जैन और इंदौर ओमकारेश्वर जाने वाली नर्मदा नदी के मार्ग पर एक व्यापार केंद्र के रूप में इसे बसाया गया था। सन 1741 में इंद्र देवेश्वर मंदिर के निर्माण के बाद इसका नाम इंदुर और फिर इंदौर पड़ा ।
यहां महाराजा यशवंत राव होलकर का साम्राज्य रहा
जिनसे अंग्रेज भी भय खाते थे। इंदौर में देखने योग्य बहुत सारी जगह है ।अन्नपूर्णा महल है ,कांच घर है, लता मंगेशकर का भी पैतृक निवास है, राजवाड़ा है, सराफा है, और खजराना गणेश का मंदिर है ,कुछ नाम अभी याद नहीं आ रहे है।
इंदौर जिस कार्यक्रम में हम जा रहे थे। वह एक संस्था द्वारा महिला अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर भारतीय चुनी हुई महिलाओं को चाहे वह साहित्यकार हो, समाज सेवी या शिक्षा के क्षेत्र से,सम्मानित किया जाना था।जिसमें 60 वर्ष से ऊपर होने के वाली 2 महिलाओं को भारत माता राष्ट्र गौरव सम्मान दिया जाना था। उन दो में से एक मैं थी।
मेरी दोनों सखियों को एक को अहिल्याबाई होलकर पुरस्कार और एक को भारत मां जीजाबाई पुरस्कार मिलना था।
अब हम लोगों ने इंदौर के साथ उज्जैन और ओंकारेश्वर महेश्वर का भी प्रोग्राम बना लिया।
ट्रेन रायपुर से सीधी इंदौर जाने वाली हफ्ते में एक दिन चलती है, उसमे हमें 2 मार्च के टिकट मिले।
हम रायपुर से सीधे इंदौर जाने वाली हमसफर ट्रेन पकड़ने के लिए स्टेशन पहुंच गए। ट्रेन यहां से ही 3 घंटे लेट थी। स्टेशन पर बैठे-बैठे आधा उत्साह गर्मी और पसीने से लस्त हुआ जा रहा था। 3 घंटे बाद ट्रेन में सवार होकर राहत मिली ।
भिलाई से एक पति पत्नी भी इसी कार्यक्रम में जा रहे थे। उन्होंने हमें फोन किया कि कल देवास में उतरते हैं।
मां चामुंडा जी दर्शन करके उज्जैन होते हुए इंदौर चलेंगे हम लोगों ने उस पर थोड़ा सा विचार किया ठीक लगा । हाथ में 2 दिन तो है ही, पहले से हम लोगों ने सारा घूमने का प्लान तय कर रखा था।
ट्रेन कहने मात्र को सुपरफास्ट थी कई जगह घंटा घंटा खड़ी होकर लेट हुए जा रही थी।
हमने ऑनलाइन महाकाल के दर्शन बुक कर लिए थे जो कि दूसरे दिन दोपहर 2:00 बजे के, अब यह असमंजस शुरू हो गया कि देवास उतरते हैं तो सारा सामान ढोते-ढोते घूमना पड़ेगा। उधर होटल का समय दोपहर 12:00 बजे का है और दर्शन बुकिंग भी दोपहर की। चलो सोचेंगे,अभी तो शाम और पूरी रात बाकी है ।
हम तीनों को ही परिवार के साथ यात्रा करने की आदत थी। पर इस बार हम तीनों महिलाओं ने हिम्मत की कि चलो साथ चलते हैं। देखेंगे हम कैसे मैनेज करेंगे ।जो होगा देखा जाएगा ।
ट्रेन में चढ़कर सबसे पहले दोपहर के भोजन पर टूट पड़े क्योंकि यहां स्टेशन पर प्लेटफार्म पर बैठे-बैठे 1:00 से 4:00 बज चुके थे । यात्रा की हड़बड़ी में हम लोग सिर्फ नाश्ता करके ही चले थे ।सबने अपने-अपने टिफिन खोले उसमें सब्जी परांठे और अचार की खुशबू से ए सी कोच महक गया।
बचपन की याद आ गई जब मां पिताजी के साथ ऐसे ही घर के बने खाने की खुशबू के साथ ट्रेन में यात्रा करते थे ।
कालांतर में समय बचाने के चक्कर में अधिकतर हवाई यात्रा शुरू हो गई।
काफी सालों बाद मुझे खुद ट्रेन के दर्शन हुए थे। खैर आजू बाजू वाले सारे सहयात्री भी ठीक ही थे। एक धार्मिक यात्रा का एक ग्रुप भी था जो पुरी से दर्शन करके इंदौर वापस जा रहा था। उनके साथ के लोग हमें भी अपने ग्रुप का समझ कर हर बार चाय नाश्ता खाना और आराम का पूछ रहे थे ।
हम लोग भी मुस्कुराकर यात्रा का आनंद ले रहे थे।
थोड़ी देर बाद जब वॉशरूम जाने की इच्छा हुई तो देखा कोच में पानी खत्म ।अरे अभी तो नागपुर भी नहीं पहुंचे नागपुर का सही समय शाम 7:00 बजे था। और हालात यह की तबीयत से गंदे टॉयलेट और ऊपर से सोने का बिस्तर भी जो दिए थे उस में भी तकिये यूज़्ड थे। इधर बोगी में पानी खत्म।
धार्मिक यात्रा ग्रुप वालों को कोई फर्क ही नहीं पड़ रहा था। शाम हो चुकी थी धार्मिक ग्रुप ने जोर-जोर से गाना बजाना शुरू कर दिया ।अब हम लोगों को यह थोड़ा परेशानी वाला लगा ।
7:00 की जगह रात 10:30 बजे नागपुर पहुंचे और राम-राम करके के पीछे पड़ कर सफाई करवाई और बोगी में पानी भरा गया नागपुर में ।
तब जाकर दोपहर से ट्रेन में चढ़े चढ़े हम लोग का इस्तेमाल कर पाए और सोचने लगी ऐसी हालत तो स्लीपर और जनरल बोगी में क्या नजारा होता होगा।
रात 11:30 बजे नागपुर स्टेशन से रवाना हुई ट्रेन।
हम तीनों पहले से ही थक कर चूर थे। सहज ही नींद की आगोश में समा गए ।
पता ही नहीं कौन सा स्टेशन आया रात के 2:00 बजे दो कन्यायें चढ़ी ।
उनको छोड़ने पूरा परिवार बोगी में चढा,यह बैग देख ,यह तेरी सीट है, और हां अंकल जी थैंक्यू आप के कारण बर्थ मिली आदि आदि ।
वैसे तो यह नजारा हमेशा यात्रा के समय होता ही है बहुत स्वाभाविक है हिंदुस्तान में
बाकी दुनिया के अन्य देशों में ऐसा मैंने कहीं नहीं पाया कि ट्रेन में चढ़ने वाले दो और चढ़ाने पूरा परिवार है।
इस वक्त यह नजारा काफी गुस्सा दिला रहा था। दिन होता तो चलो ठीक था पर रात के 2:00 इतना शोर सभी की नींद में खलल पड़ गया ।
खैर दोबारा सोने की कोशिश तमाम व्यर्थ साबित हुई।
फिर क्या था समय काटने का जरिया बना मोबाइल के गेम खेलते खेलते सुबह हो गई।
देवास आ गया जो सुबह 5:30 की जगह आने वाला 9:00 बजे आया। तब हम तीनों ने तय कर लिया कि नहीं उतरेंगे ।
यहां से सिर्फ 40 मिनट है इंदौर और वहां जाकर होटल में चेकिंग करके सामान रखकर या तो बस से या टैक्सी से सीधे उज्जैन जाएंगे।
इंदौर को आना था 9:40 पर पर आया वह 10:45 बजे। वह भी लास्ट प्लेटफार्म नंबर 6 पर गर्मी भीड़भाड़ और सामान लेकर बाहर आते आते 11 से ऊपर हो गया।
टैक्सी वाले को पूछा वह बोला ऑटो वाले भैया के पास चले जाओ बोला, सरवटे बस स्टैंड के पास छोटी ग्वालटोली में स्थित इस होटल में चलना है । आटोवाला बोला-जो मर्जी हो दे देना।
20 मिनट घुमाने के बाद जब उसने हमें होटल छोड़ा ।
हम तीनों ने राहत की सांस ली। होटल का रूम भी तैयार नहीं था। उनको बोला भैया हम तो पहले ही थके हुए हैं ऊपर से ऑटोवाला 20 मिनट से घुमा रहा है।
हैरानी से होटल वाला हम लोगों को बोला बहन जी आप सभी पढ़ी-लिखी लगती हैं ,गूगल मैप कर लिया होता ।
हमको कॉल कर दिया होता स्टेशन से बाहर आते ही आपको सिर्फ मेन रोड क्रॉस करनी थी।
और इस तरफ हमारा होटल है। हमको खुद पर बड़ी शर्मिंदगी महसूस हुई ।
अरे यह हम तीनों के दिमाग में आया ही नहीं है।
जल्दी से खाली रूम में सामान रखवाया गया और उसी से बोला भैया इमरजेंसी में टैक्सी मंगवा दो
अब तो सार्वजनिक वाहन से हम 2:00 बजे के पहले उज्जैन नहीं पहुंच पाएंगे असंभव है।
आधे घंटे में हम तैयार हुए और भैया ने हमें एक टैक्सी बुक करा दी।
जाते-जाते हम लोग उसको बोल गए भैया यह कमरा हमारा बुक किया हुआ नहीं है।
फोटो में जो देखा था वह ट्रिपल बेड वाला बड़ा कमरा था वही बुक किया था
बोला चिंता ना करें ,शाम को आप आएंगे तब तक मैं बदल दूंगा ।इमरजेंसी में बुलाई गई टैक्सी,उसने भी हम लोगों से सामान्य से डेढ़ गुना ज्यादा किराया लिया।
तब तैयार हुआ चलने को।12 पहले ही बज चुके थे घड़ी में भी और हम तीनों के भी।
फटाफट टैक्सी में बैठे और तय समय के 15 मिनट पहले ही उज्जैन पंहुच गये।
उज्जैन शिप्रा नदी के किनारे बसा हुआ अत्यंत प्राचीन शहर है ।
यह महान सम्राट विक्रमादित्य की राजस्थानी थी ।
यहां स्थित महाकाल ज्योतिर्लिंग भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है।
उज्जैन का प्राचीन नाम अवंतिका कनकशृंगा और उज्जयिनी है।
आप इसे मंदिरों की नगरी भी कह सकते हैं यहां चिंतामणि गणेश गढ़ कालिका माता हरसिद्धि माता काल भैरव महादेव सिद्धनाथ मंगलनाथ देव अंगारेश्वर से अनेक मंदिर हैं
और एक मंदिर गढ़ कालिका मां के मंदिर के बारे में कहा जाता है कि यह अत्यंत प्राचीन है ।
इसकी स्थापना महाभारत काल में हुई थी और कालजयी कवि कालिदास जी इन के उपासक थे। इतने पवित्र स्थान पर आकर हम लोगों को एक अलग ही आनंद आ रहा था।
भगवान शिव और इतने सारे भगवानों की नगरी में आ गये।
यहां सकारत्मक ऊर्जा चारों ओर थी।
महाकाल मंदिर में पहुंच गए। लाइन काफी लंबी थी ।
पहले से बुकिंग लेने के बाद भी ।महाकाल जी के दर्शन बहुत अच्छे से हुए दोपहर 1:00 से 3:00 के बीच में जनता के लिए फ्री रखा जाता है।
जब वे स्वयं जल चढ़ा सकते हैं और हम लोगों ने तो शिवलिंग छूकर भगवान से आशीष भी ले लिया ।
बाहर आकर ड्राईवर से कहा-भैया भूख के मारे पेट में चूहे दौड़ रहे हैं, फटाफट ऐसे होटल में ले चलो जहां पर दाल बाफले अच्छे मिलते हो।
होटल पहुंचे साधारण ही था पर खाने का स्वाद बहुत अच्छा था ।साथ ही हम लोगों ने चाय भी गटक ली। घड़ी का कांटा 5 को पार कर गया था।
उज्जैन के दो मंदिर काल भैरव और हरसिद्धि माता के दर्शन कर पाए थे ।
इतने में ही 7:00 बज गए और मेरी छोटी बहन जो इंदौर में रहती है। उसने हम सबको बुलाया था रात के खाने पर, हम लोग उसके घर पर इसलिए नहीं रूके थे कि उसके हस्बैंड के बायपास हुआ था। अत: हम लोग होटल में रुके थे ।अब उसका फोन जैसे ही आया।
बाकी मंदिर छोड़कर ,हम लोग वापस इंदौर भागे।
9:00 बजते-बजते उसके घर पहुंच गए।
बढ़िया गरमा गरम खाना खाया और खूब गप्पे मारी। तब तक रात के 10:30 बज गए थे ।उन्होंने टैक्सी बुला दी और हम लोग वापस होटल पहुंचे।
रात 11:00 बजे के आसपास। वापस आकर क्या नजारा देखते हैं । हमारा सेट किया कमरा मिला ही नहीं ।उसने बोला-क्या करूं "बहन जी शादी का मौसम है ।पूरा होटल फुल चल रहा है और कोई कमरा आज खाली नहीं हुआ ।"
आप तीनों उसी में एडजेस्ट कर लो। मैं तीसरा बिस्तर जमीन पर लगवा देता हूं। अब हम लोगों का दिमाग बहुत खराब हुआ ।होटल वाले से गुस्से में बहुत कहासुनी हुई। थकान इतनी थी कि हम लोगों को उसी व्यवस्था में सोना पड़ा। रात के 12:00 बजे हम कहां जाते ।
दूसरे दिन ओमकारेश्वर जाने के लिए आज वाली ही टैक्सी को बुक कर चुके थे।
सुबह 7:30 बजे निकलना था। रात के 12:00 बज चुके थे। थकान इतनी थी कि बिस्तर पर पड़ते ही चारों खाने चित ।
सुबह 5:00 बजे अलार्म बज उठा। फटाफट उठे और 7:00 बजे तैयार होकर बैठ गए।
टैक्सी भी समय से आ गई। होटल वाले ने हमारा कंप्लीमेंट्री नाश्ता हमारा दिमाग ठंडा करने के लिए पैक करवा दिया था 7:00 बजे ही ।
साथ ही कुछ ज्यादा ही मेहरबान होकर दोपहर का खाना भी।
हम लोगों का गुस्सा उतारने के लिए।
मौसम गर्म था। निमाड़ की गर्मी जिसने देखी है वही जान सकता है कि 8 बजते बजते भी कितनी तीखी धूप हो जाती है ।
मन को हल्का करने और मूड चेंज करने हम तीनों अंताक्षरी खेलने लगे ।
रोड यात्रा थी तो 3 घंटे की पर ड्राइवर ने पहले ही बता दिया मैडम एक घंटा और पकड़ लो,गड्ढे पार करने का ।अब आप सोच सकते हैं क्या हालात होंगे सड़क के????
प्रकृति के नजारे बेहद खूबसूरत थे टेसू के फूलों से लदे पेड़ दोनों और और हरे भरे खेत फसल कहीं पक गयी थी,और कहीं बिल्कुल पकने को तैयार खड़ी थी।
नाश्ता खाना साथ था ही, तो कहीं नहीं रुके सीधे चलते चले गए खाते पीते पहुंच गए 11:30 बजे ओमकारेश्वर ।
ओंकारेश्वर का इतिहास थोडा सा जाना यहां लंबे समय तक आदिवासी भील राजाओं का शासन का क्षेत्र रहा।
यहां पर देवी अहिल्याबाई होल्कर की ओर से नितय ही मातृका के नाम से यानि महारानी अहिल्याबाई के नाम से,शिवलिंग तैयार कर उनका पूजन करने के बाद नर्मदा नदी में विसर्जित कर दिया जाता था।
ओंकारेश्वर का मूल नाम मन्धाता है। शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से 1 ज्योतिर्लिंग यहां स्थित है।
ऐसी धार्मिक मान्यता है कि बाबा भोलेनाथ यहां रात्रि में शयन के लिए आते हैं। और यह एकमात्र ऐसा मंदिर है जहां शिव पार्वती रोज चौसर पासे खेलते हैं।
वहां जाकर हम लोगों ने देखा 12:00 बजे की तीखी धूप में। टैक्सी स्टैंड से चलकर मंदिर की सीढ़ियों तक पहुंचने का रास्ता काफी लंबा था ।
साथ ही 2 में से 1 ओवर ब्रिज बंद था। भीड़ भी काफी थी ।
यहां पर टैक्सी वाले ने सुझाव दिया ।
बहन जी, आप तो नदी नाव से पार करके उस तरफ पहुंच जाओ।
सिर्फ मंदिर की सीढ़ी चढ़ना पड़ेगा ।
हम लोगों को अच्छा लगा,वैसा ही किया ।
हम लोग दूसरी तरफ से और जैसे ही नाव में बैठे थे वैसे ही नर्मदा मैया की आरती कर, चुनरी समर्पित कर दी ।
अब मंदिर से हमने फूल और प्रसाद ले लिया ।
वह ले ही रहे थे कि, एक पण्डित जी मिल गए बोले कि हम ₹400 परहेड में वीआईपी दर्शन के साथ रुद्राभिषेक भी करवा देंगे।
हम लोगों के पास समय का अभाव तो था ही ।
बात मान ली उनकी।चल पड़े उनके साथ ही दर्शन करने बहुत अच्छे हुए पूरे मंत्र उच्चारण के साथ उन्होंने हम लोगों से जल फूल बेलपत्र सब चढ़वाये
हम लोगों ने फिर यहां पर भगवान जी को छू ही लिया। भगवान जी के दर्शन करते समय। और वापस बाहर आ गए ।
बाहर आकर टैक्सी स्टैंड पर बाजू के होटल में लंच लेकर बैठ गए ।खाना खाना खाया ,चाय पी ली। और वापस महेश्वर के लिए टैक्सी में बैठ गए।
ओंकारेश्वर से महेश्वर की रोड अच्छी थी ।अच्छे से पहुंच गए । वहां जाकर हमने घाट के दर्शन किए।
अहिल्या बाई का महल देखा ।महारानी अहिल्याबाई के बारे में पूरा जाना और एक बात जिसमें हम तीनों को बहुत गर्व महसूस हुआ, कि एक महिला होते हुए उन्होंने कितने ऐतिहासिक कार्य किए हैं।
हिंदुस्तान में कितने मंदिर बनवाए हैं। काशी विश्वनाथ मंदिर भी उस में शामिल है।
धार्मिक पूजा-पाठ के साथ-साथ जितने निष्पक्ष भाव से उन्होंने वहां पर राज किया और दुश्मन के आगे अपने घुटने कभी नहीं टेके। इसके अलावा एक चीज मुझे बहुत अच्छी लगी वह यह कि उन्होंने मुगल काल के दौरान जो उनके मंदिर का अखंड दीप प्रज्वलित हो रहा था उसे बुझा दिया था मुगलों ने।
उन्होंने लगभग शायद 100 साल बाद उसे फिर से प्रज्वलित करवाया ।
वह राज राजेश्वर मंदिर में आज भी प्रज्वलित है ।
,देख कर बहुत अच्छा लगा ।
वह रोज शिवलिंग बनाती थी और जिस मंदिर में पूजा करती थी। वहां भी हमने माथा टेका।
यह सब करते हुए 5:00 बजे गए थे। अब हम बाहर आ गए।
वापस इंदौर के लिए चल पड़े ।आज का खाना सहेली के मौसेरे भाई के घर था ।
वे भी इंदौर में ही रहते थे ।तय समय हम लोग इंदौर पहुंच गए क्योंकि वापसी की रोड पूरी हाईवे थी ।रोड की कंडीशन बहुत अच्छी थी।
तो समय भी हमें कम लगा। 5:00 बजे चलकर हम लोगों ने 7:30 7:45 बजे इंदौर टच कर लिया।
सीधे उनके भाई के घर ही गए बढ़िया गरमा गरम चाय नाश्ता किया । जम कर भाभी जी के साथ गप्प मारी ।
तब तक उसका भाई भी फैक्ट्री से आ गया। हम लोग ने साथ में खाना खाया ।
फिर उन्होनें सजेस्ट किया कि आज से बस का टिकट कर लो ।जो वोल्वो बसें इंदौर भोपाल के बीच चलती हैं ।
उस रास्ते पर काफी भीड़ रहती है, सुरक्षित रहोगे।उन्होनें टिकट करवा ही दी।
हम लोग वापस वही 11:00 बजे होटल पहुंचे और चुपचाप सो गए।
दूसरे दिन 2:00 बजे से प्रोग्राम था। सुबह कोई जल्दी बाजी थी नहीं आराम से उठे ।आराम से तैयार हुए नाश्ता वगैरह करके 11:30 12:00 तक हम लोग रेडी हो गए ।
जहां प्रोग्राम था ,वह हमारे यहां से होटल से 40 मिनट की दूरी पर था।
हम लोग निकल पड़े और वहां पहुंच गए वहां भी हाल फिलहाल तो बंद था।
आजू बाजू के नजारे देखें एक लगी हुई लाइब्रेरी थी ,मानस भवन था उसे घूम लिया ।
तब तक हॉल खुल गया और प्रोग्राम की तैयारी शुरू हुई
2:00 बजे का प्रोग्राम 3:30 पर शुरू हुआ और आधा कार्यक्रम काटकर शॉर्ट में निपटा दिया गया।
हम लोगों को अच्छा ही लगा। शाम को हम लोगों ने सोचा चलो आज सराफा का मजा लेते हैं ।पर तुरंत ही वहां पर उन्होंने कवि गोष्ठी रख दी, और साथ ही रात का खाना भी सब का ऑर्डर कर दिया था।
कवि गोष्ठी में भाग लेकर और खाने का पैकेट लेकर हम लोग सीधे होटल वापस आ गए।
वहीं रात के 9:00 बज चुके थे ।अब दूसरे दिन सुबह 6:00 बजे की बस थी हमारी।
क्योंकि भोपाल जाकर भी हमें 3 घंटा हाथ में चाहिए था।
वहां से 4:00 बजे की ट्रेन थी। हमारी वापसी में कोई तकलीफ नहीं हुई।
जैसे ही बस स्टैंड पहुंचे। जो पहली बस लगी थी ।उसने हमें उसी में बैठा दिया टिकट भले ही दूसरी बस का था ।
हम लोग भोपाल भी एक घंटा और एडवांस में पहुंच गए।
अब हमारे पास 4 घंटे थे ।यहां पर भी मेरी फ्रेंड के एक और मौसेरे भाई रहते थे उन्हें कॉल किया गया।
तुरंत आ गए भाई साहब और हम सब का सामान गाड़ी में रखकर ही हमें लंच कराने भोपाल बड़े तालाब के पास एक अच्छे रेस्टोरेंट में ले गए।
फिर हमें पूरा नया भोपाल बडा तालाब, न्यू मार्केट, राज भवन और उसके आस पास के एरिया में घुमाते हुए वापस स्टेशन छोड़ गए।
भोपाल से ही हमारी ट्रेन छूटनी थी,तो सही समय पर छूटी।
दूसरे दिन समय पर हम वापस अपने घर आ गए ।
उस दिन 7 मार्च था, होलिका दहन था।
सब फटाफट अपने घर पहुंचे और काम में लग गए ।
ऐसी रही हम 3 देवियों की इंदौर ,उज्जैन ,महेश्वर और ओंकारेश्वर की यात्रा
आपको कैसी लगी कृपया बताएं।
अपराजिता शर्मा
Milind salve
28-Jul-2023 03:52 PM
Nice one
Reply
Alka jain
28-Jul-2023 03:10 PM
Nice
Reply
सीताराम साहू 'निर्मल'
28-Jul-2023 02:55 PM
सुंदर प्रस्तुति 👌
Reply